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Toggleहवन क्यों अनिवार्य है ?
सनातन संस्कृति में प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान हवन के बिना अपूर्ण होता है । यज्ञ अथवा हवन करने के साक्ष्य सिन्धु सभ्यता के अवशेषों विशेषकर कालीबंगा से भी प्राप्त होते हैं। सामान्य रूप से कहा जा सकता है कि हवन अथवा यज्ञ हिंदू धर्म में शुद्धीकरण का एक कर्मकांड है। अग्नि को सनातन संस्कृति में बहुत पवित्र माना गया है। हवन का फ़ायदा जानना जरूरी है। यज्ञ या हवन के माध्यम से देवताओं को आहुति प्रदान किया जाता है जिससे प्रसन्न होकर देवता मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। इस प्रकार हवनकुंड में अग्नि को माध्यम बनाकर ईश्वर की उपासना करने की प्रक्रिया को यज्ञ कहते हैं। वेदों में उल्लिखित है कि देवताओं को भोजन, अग्नि में दी गई आहुतियों के माध्यम से मिलता है।
हवन करने से वातावरण एकदम शुद्ध हो जाता है और उसके बाद सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है. घर में नियमित हवन करने के अनेको फायदे हैं। आइए जानते हैं आखिर क्यों पूजा के बाद हवन करना आवश्यक है और क्या है इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व।
हवन का धार्मिक महत्व:
पूजा के बाद हवन करना आज भी उतना ही महत्वपूर्ण और शुभ फलदायी माना गया है जितनाप्राचीन काल में हुआ करता था। हिंदू धर्म में हवन को शुद्धिकरण का एक विशेष गुण माना गया है। शास्त्रों के अनुसार पूजा-पाठ समेत कोई भी धार्मिक कार्य हवन के बिना अधूरा माना जाता है। हवन करने के उपरांत आस पड़ोस की नकारात्मक शक्तियां और बुरी आत्माओं के प्रभाव को भी समाप्त किया जाता है। अगर कोई व्यक्ति अगर ग्रह दोष से पीड़ित हो तो उसके ग्रह की शांति के लिए हवन की जाती है। ऐसा माना जाता है कि हवन सम्पन्न होने के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवा कर दान देना चाहिए। भूमि पूजन या भवन निर्माण, पूजा-पाठ, कथा और विवाह आदि शुभ कार्य में हवन कराया जाना अनिवार्य माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार हवन करने से वास्तु दोष को भी दूर किया जा सकता है।
हवन का वैज्ञानिक महत्व:
हवन के दौरान जो धुआँ निकलता है उससे वायुमंडल शुद्ध हो जाता है। हवन में इस्तेमाल होने वाली सामग्री को एक विशेष प्रकार से निर्मित किया जाता है जो सेहत के लिए अत्यंत फ़ायदेमंद होती है। इसमें गाय के गोबर से बने उपले का इस्तेमाल भी किया जाता है। हवन में हानिकारक जीवाणु नष्ट करने की 94 प्रतिशत क्षमता होती है जिससे कई प्रकार की बीमारियों से राहत पायी जा सकती है।
राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी साबित किया है की हवन सामग्री में प्रयोग होने वाली आम की लकड़ी के साथ हवन सामग्री का प्रयोग किया जाए तो एक घंटे के भीतर ही कक्ष में उपस्थित जीवाणु का स्तर 94 प्रतिशत कम हो जाता है। और उन्होंने पाया कि चौबीस घंटे के उपरांत भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से 96 प्रतिशत कम तथा वहां की वायु में जीवाणु स्तर एक महीने के बाद भी सामान्य से बहुत कम था।
हवन करने से वायु प्रदूषण कम होता है:
हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करने के उपरांत इस पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, नारियल, अन्न इत्यादि की आहुति देना अहम् माना जाता था।
हमारे ऋषि मुनि वायु प्रदूषण को कम करने के लिए नियमित रूप से तथा फलदायी यज्ञ किया करते थे। रामायण तथा महाभारत में पुत्रेष्टि यज्ञ, अश्वमेध यज्ञ, राजसूय यज्ञ आदि यज्ञ करवाए जाने का स्पष्ट प्रमाण मिलता है।
हवन करने से शांति की प्राप्ति होती है:
यज्ञ अथवा हवन में प्रयुक्त होने वाली विशिष्ट गुणों से युक्त सामग्री को समिधा कहा जाता है। समिधा में नवग्रहों की शान्ति के प्रतीक रूप में नौ भिन्न-भिन्न काष्ठीय एवं शाकीय पौधों का समिधा के रूप में प्रयोग किया जाता है। सूर्य की शांति के लिए आम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। यह व्याधियों का शमन करती है। चंद्रमा की शांति हेतु पलाश की लकड़ी प्रयुक्त होती है, यह मनोविकार को शांत करने के लिए उत्तम कार्य करती है।
हवन से अनेकों रोगों का उपचार होता है:
मंगल ग्रह की बाधा के उपचार तथा त्वचा संबंधी रोगों के निवारण के लिए खैर की लकड़ी प्रयोग में लायी जाती है। बुध ग्रह की शांति के लिए लटजीरा का प्रयोग किया जाता है। लटजीरा मानसिक रोग और मुंह के रोगों के उपचार के लिए इस्स्तेमाल होता है। बृहस्पति ग्रह की शांति के लिए और बुद्धि , विद्या में भी वृद्धि के लिए पीपल का प्रयोग किया जाता है। शुक्र ग्रह को खुश करने के लिए गूलर का प्रयोग किया जाता है इससे मोक्ष मिलता है। यह मधुमेह, कंठ, उदर रोग तथा नेत्र संबंधी विकारों में भी व्यवह्रत होता है। शनि ग्रह को प्रसन्न करने के लिए शमी का प्रयोग किया जाता है। यह पाप नाशक भी होता है। राहु की शान्ति के लिए दूर्वा प्रयोग में लायी जाती है। इससे लम्बी उम्र की प्राप्ति होती है। कुश का प्रयोग केतु की शांति के लिए किया जाता है।
हवन करने से वायुमंडल शुद्ध होता है:
अग्नि देव किसी भी पदार्थ के गुणों को वायुमंडल में मुक्त कर देते है जो इनकी विशेषता है, इसके बाद उसके गुणों में कई गुना वृद्धि होती है। शास्त्रों में समिधा का उपयोग ऋतू अनुसार कैसे उपयोग करना है इस विधि का उल्लेख है। जैसे वसंत ऋतु में शमी का, पीपल का ग्रीष्म में , वर्षा में ढाक या बिल्व, शरद में आम का, हेमंत में खेर का , शिशिर में गूलर या बड़ की समिधा उपयोग में लानी चाहिए।
हवन में प्रयुक्त की जाने वाली सामग्री कैसी होनी चाहिए:
अग्नि में शुद्धीकरण का गुण प्रत्यक्ष रूप से विद्यमान है। वह अनेक दोष और रोगों को समाप्त करती है। वैदिक काल से यज्ञ, हवन की परंपरा सुचारू रूप से चली आ रही है। हवन में प्रयुक्त की जाने वाली सामग्री एकदम शुद्ध और स्वच्छ होनी चाहिए। सड़ी-गली, घुन, कीड़े लगी हुई, भीगी हुई या श्मशान में लगे वृक्षों की समिधा वर्जित है। बागों, वनों और नदी के किनारे लगे वृक्षों की समिधा हवन के लिए सर्वश्रेष्ठ कही गई है।
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