माथे पर तिलक लगाना हिन्दू धर्म या सनातन धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।
ये प्रथा प्राचीन काल से ही प्रयोग चली आ रही है. लेकिन क्या है इसका महत्व।
हिन्दू धर्म में कई ऐसी परम्पराएं हैं जिनका पालन पूजा-पाठ के दौरान सदियों से होता चला आ रहा है।
माना जाता है कि बिना तिलक लगाए कोई भी पूजा अथवा अनुष्ठान पूर्ण नहीं होती है।
यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसके कई फायदे बताए गए हैं।
हमारी चेतना का भी मुख्य स्थान आज्ञा च्रक को माना जाता है। ध्यान करते समय इसी स्थान पर मन को एकाग्र किया जाता है।
यही कारण है कि तिलक या टीका हमेशा आज्ञा च्रक पर लगाया जाता है।
अधिकतर मौकों पर अनामिका उंगली से ही तिलक लगाया जाता है क्योंकि ऐसा करने से इज्जत और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।
अनामिका उंगली सूर्य की प्रतीक होती है। इसलिए हमेशा अनामिका उंगली से ही तिलक लगाया जाना चाहिए।
अगर कोई अंगूठे से तिलक लगाता है तो उसे उसे मान-सम्मान, ज्ञान और आभूषण की प्राप्ति होती है।
तर्जनी उंगली से तिलक लगाने के उपरान्त विजय की प्राप्ति होती है।
एक बात का हमेशा ध्यान रखे की दूसरे के माथे पर तिलक लगाते समय हमेशा अंगूठे का प्रयोग करना चाहिए।
इस परम्परा का पालन करने से मन एवं मस्तिष्क शांत रहता है और सारा ध्यान ईश्वर की भक्ति में लगा रहता है।
इसके साथ तिलक लगाने से दैवीय आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। जिसके कारण सभी कार्य सफल हो जाते हैं।
शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि तिलक लगाने से उग्र ग्रहों को शांत करने में और उनके नकारात्मक प्रभाव को दूर करने में बहुत सहायता मिलती है।
आप कुमकुम, रोली, पीला व सफेद चंदन, हल्दी या भस्म का प्रयोग भी कर सकते हैं।
शुभ कार्य को शुरू करने से पहले तिलक लगाना चाहिए और भगवान का आशीर्वाद लेना चाहिए।